संसद में नोट के बदले वोट या भाषण केस में सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को बड़ा फैसला सुनाया. भारत की शीर्ष अदालत ने रिश्वत मामले में विधायकों और सांसदों को राहत देने से साफ इनकार कर दिया है. खास बात है कि अदालत ने 1998 में दिया अपना ही फैसला बदल दिया है. उस दौरान सांसदों और विधायकों को सदन में रिश्वत लेकर भाषण या वोट देने के लिए अभियोजन से छूट दी गई थी.
CJI यानी भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली 7 सदस्यीय बेंच ने सोमवार को फैसला सुनाया है. अदालत ने कहा कि रिश्वतखोरी के मामलों में संसदीय विशेषाधिकारों के तहत संरक्षण प्राप्त नहीं है और 1998 के फैसले की व्याख्या संविधान के अनुच्छेद 105 और 194 के विपरीत है.
सीजेआई के साथ बेंच में जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस एमएम सुंद्रेश, जस्टिस पीएस नरसिम्हा, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल थे.
वोट फॉर नोट केस पर सुप्रीम कोर्ट के बड़े फैसले के बाद सोमवार (4 मार्च, 2024) दोपहर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पहला रिएक्शन आया. उन्होंने माइक्रो ब्लॉगिंग प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व में टि्वटर) पर एक पोस्ट के जरिए इस निर्णय का स्वागत किया. पीएम ने लिखा- स्वागतम! माननीय सुप्रीम कोर्ट की ओर से यह बड़ा फैसला है जो कि साफ-सुथरी राजनीति को सुनिश्चित करने के साथ समूची व्यवस्था में लोगों के विश्वास को और गहरा करेगा.
SWAGATAM!
A great judgment by the Hon’ble Supreme Court which will ensure clean politics and deepen people’s faith in the system.https://t.co/GqfP3PMxqz
— Narendra Modi (@narendramodi) March 4, 2024
सुप्रीम कोर्ट की पांच बड़ी टिप्पणियां
शीर्ष न्यायालय ने कहा, ‘विधायिका के सदस्य जब भ्रष्टाचार या रिश्वतखोरी करते हैं, तो यह सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी को खत्म कर देती है.’ साथ ही कोर्ट ने कहा, ‘पीवी नरसिम्हा राव मामले में दिया गया फैसला, जिसमें सांसदों को छूट देने की बात कही गई थी. वह बेहद खतरनाक है और इसलिए उस फैसले को खारिज किया जाता है.’
अदालत का कहना है कि रिश्वत लेने का अपराध इस बात पर निर्भर नहीं करता है कि बाद में भाषण या वोट दिया है या नहीं. कोर्ट ने कहा कि जब विधायक रिश्वत स्वीकार कर लेता है, तब ही यह अपराध हो जाता है. कोर्ट ने कहा, ‘घूस के चलते किसी सदस्य को एक खास तरह से मतदान करने के लिए कहा जाता है, जो भारतीय लोकतंत्र के आधार को खत्म करती है.’
शीर्ष न्यायालय ने कहा, ‘अनुच्छेद 105 या 194 में रिश्वतखोरी को छूट नहीं दी गई है, क्योंकि घूसखोरी में शामिल एक सदस्य अपराध में भी शामिल होता है. यह ऐसा काम है, जिसकी जरूरत वोट डालने या भाषण देने के लिए जरूरी नहीं है.’
1998 में क्या हुआ था
1998 में पांच जजों की बेंच ने 3-2 की बहुमत से फैसला सुनाया था कि भाषण या वोट से जुड़े रिश्वतखोरी के मामले में संसद या राज्यों की विधानसभा के सदस्यों को अभियोजन से छूट रहेगी. उस दौरान अनुच्छेद 105(2) और 194(2) का खासतौर से जिक्र किया गया था.