विरासत कानून राजीव गांधी ने इंदिरा गांधी की संपत्ति हासिल करने के लिए खत्म किया था : PM मोदी

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने चुनावी भाषणों में जमकर कांग्रेस पर प्रहार कर रहे हैं. मध्य प्रदेश के मुरैना में एक जनसभा में पीएम मोदी ने कहा कि 2014 में कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में लिखा कि धर्म के आधार पर आरक्षण देने के लिए कानून बनाना पड़े, तो कानून भी बनाएंगे. लेकिन, 2014 में दलित, OBC और आदिवासी समाज जाग गया और उसके बाद सभी समाजों ने एक होकर कांग्रेस के सपनों को मिट्टी में मिला दिया, उनको सत्ता से बाहर कर दिया.

पीएम मोदी ने कहा कि मैं आज देश के सामने पहली बार एक दिलचस्प तथ्य रखना चाहता हूं. जब देश की एक प्रधानमंत्री इंदिरा जी नहीं रही, तो उनकी जो प्रॉपर्टी थी, वो उनकी संतानों को मिलनी थी. लेकिन पहले ऐसा कानून था कि वो उनको मिलने से पहले सरकार एक हिस्सा ले लेती थी. तब चर्चा थी कि जब इंदिरा जी नहीं रही और उनके बेटे राजीव गांधी जी को ये प्रॉपर्टी मिलनी थी. तब अपनी उस प्रॉपर्टी को बचाने के लिए, उस समय के प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी ने पहले जो विरासत कानून था, उसको समाप्त कर दिया था.

पीएम ने कहा कि भाजपा सबका साथ, सबका विकास के मंत्र पर चलने वाली पार्टी है. भाजपा सरकार जरूरतमंदों में कोई भेदभाव नहीं करती. कोविड के दौरान जरूरतमंद 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन मिलता रहा. भाजपा सरकार ने 4 करोड़ गरीबों को पक्के मकान दिए हैं. ये घर बिना भेदभाव, हर धर्म के लोगों को मिले हैं. राहुल गांधी पर हमला बोलते हुए पीएम मोदी ने कहा कि इन दिनों कांग्रेस के शहजादे को आए दिन मोदी का अपमान करने में मजा आ रहा है. वे कुछ भी बोलते जा रहे हैं. इससे कुछ लोग दुखी हैं कि पीएम के लिए ऐसी भाषा का प्रयोग क्यों किया जा रहा है. पीएम ने कहा कि मेरी सबसे विनती है कि कृपया करके आप दुखी मत होइए, गुस्सा मत कीजिए, आपको पता है कि वे नामदार हैं और हम कामदार हैं.

पीएम मोदी ने कहा कि आजकल कांग्रेस के शाही परिवार के शहजादे पूरे देश में बढ़ चढ़कर कह रहे हैं कि अब आपकी संपत्ति का एक्स-रे होगा. हमारी माताओं और बहनों के पास जो पवित्र स्त्रीधन होता है कांग्रेस उसे जब्त करके अपनी वोटबैंक मजबूत करने के लिए, उसे बांटने की सार्वजनिक घोषणा कर रही है.

पीएम ने बताया कि कांग्रेस दलितों का, पिछड़ों का, आदिवासियों का हक छीनने का षड्यंत्र लंबे समय से कर रही है. 19 दिसंबर, 2011 को तब की कांग्रेस की केंद्र सरकार धर्म के नाम पर आरक्षण देने का एक नोट कैबिनेट में लेकर आई थी. इस कैबिनेट नोट में कहा गया था कि ओबीसी समाज को जो 27 प्रतिशत आरक्षण मिलता है, उसका एक हिस्सा काटकर मजहब के नाम पर दिया जाएगा. सिर्फ दो दिन बाद 22 दिसंबर, 2011 को इसका आदेश भी निकाल दिया गया. बाद में आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने कांग्रेस सरकार के इस आदेश को रद कर दिया. ये सुप्रीम कोर्ट गए, लेकिन राहत नहीं मिली.