देश में लड़ाकू विमान अब सौ फीसदी स्वदेशी पुर्जों से बनेंगे

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नई दिल्ली . हिन्दुस्तान एयरोनाटिक्स लिमिटेड (एचएएल) ने देश में बन रहे सभी विमानों में स्वदेशी कंटेंट सौ फीसदी तक बढ़ाने के प्रयास तेज कर दिए हैं. यानी उनमें इस्तेमाल हो रहे सभी कल पुर्जे स्वदेशी हों. तेजस, सुखोई समेत तमाम विमानों में यह अभी तक 60 फीसदी ही पहुंच पाया है.

रक्षा मंत्रालय के सूत्रों ने यह जानकारी दी है.

एक सरकारी दस्तावेज के अनुसार हल्के लड़ाकू विमान (एलसीए) तेजस में अभी तक स्वदेशी कंटेंट 60 फीसदी है जबकि 40 फीसदी विदेशी कंटेंट है. इसी प्रकार सुखोई 30एमकेआई में भी यह कंटेट 60 फीसदी ही है.

ये दोनों लड़ाकू विमान हैं. तेजस को देश में ही विकसित किया गया है जबकि सुखोई रूस की मदद से देश में तैयार किया गया है. अब यह कोशिश की जा रही है कि इन विमानों में स्वदेशी कंटेंट को 90-100 फीसदी तक ले जाया जाए. अमेरिका द्वारा जीई इंजनों की तकनीक भारत को हस्तांतरित होने के बाद उनका देश में ही निर्माण होने की संभावना है. इनमें इस्तेमाल हो रहे कई छोटे कलपुर्जों को भी देश में बनाने के लिए उद्योग जगत से कहा गया है.

इसी प्रकार अल्ट्रालाइट हेलीकाप्टर (एएलएच) में अभी तक स्वेदशी कंटेट महज 56 फीसदी है. जबकि ड्रोनियर 228 विमानों में यह सबसे कम 40 फीसदी है. इन दोनों विमानों की सुरक्षा बलों में मांग बढ़ रही है इसलिए इनमें स्वदेशी कंटेंट बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है. वैसे भी रक्षा मंत्रालय के खरीद के नियमों के तहत कोई रक्षा सामग्री भारत में निर्मित तभी मानी जाती है जब उसमें स्वदेशी कंटेंट कम से कम 50 हो. इसलिए ड्रोनियर के मामले में इसे 50 से ऊपर ले जाने की प्राथमिकता सबसे पहले रखी गई है.

रक्षा उपकरणों के देश में निर्माण पर जोर

रक्षा मंत्रालय लगातार रक्षा उपकरणों के देश में निर्माण पर जोर दे रहा है. पिछले कुछ समय से 65 फीसदी से ज्यादा रक्षा खरीद का बजट भारत में निर्मित सामग्री की खरीद पर खर्च हो रहा है. विमानन क्षेत्र में छोटे-कल पुर्जों की उपलब्धता बड़ी समस्या है, जिस पर ध्यान केंद्रीत किया गया है. हाल में एचएएल ने देश में निर्मित ब्लैक बाक्स का इस्तेमाल विमानों में शुरू किया है. इससे धन और समय की बचत भी हो रही है.