चुनावी बॉन्ड योजना की एसआईटी जांच की मांग

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सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ द्वारा असंवैधानिक घोषित करते हुए रद्द की गई चुनावी बॉन्ड योजना को लेकर विवाद खत्म नहीं होता दिख रहा है.

अब सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा गया है कि चुनावी बॉन्ड चंदे के माध्यम से ‘कॉरपोरेट्स और राजनीतिक दलों’ के बीच कथित तौर पर ‘बदले की व्यवस्था’ यानी एक दूसरे को लाभ पहुंचाने की जांच के लिए एसआईटी गठित करने की मांग की है. याचिका में बॉन्ड के जरिये दान देने वाली कंपनियों के मनी ट्रेल (धन के श्रोत) की भी जांच की मांग की गई है.

गैर सरकारी संगठन कॉमन कॉज और सीपीआईएल ने शीर्ष अदालत में यह याचिका दाखिल की है. याचिका में आरोप लगाया है कि चुनावी बॉन्ड मामले में करोड़ों रुपये का घोटाला शामिल है और इसे शीर्ष अदालत की निगरानी में एसआईटी द्वारा स्वतंत्र जांच के जरिये ही उजागर किया जा सकता है.

याचिका में कहा गया है कि संविधान पीठ द्वारा गुमनाम चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द किए जाने के बाद जो आंकड़े सार्वजनिक हुए उससे साफ पता चला कि चुनावी बॉन्ड के जरिये कंपनियों ने अधिकांश चंदे ‘क्वीड प्रो क्वो’ यानी बदले की व्यवस्था के जरिये राजनीतिक दलों को दिए. याचिका में कहा गया है कि आंकड़ों से जाहिर होता है कि कंपनियों ने बॉन्ड के जरिये राजनीतिक दलों को चंदा पहला- सरकारी अनुबंधों या लाइसेंस पाने के लिए, दूसरा- सीबीआई, आयकर विभाग, प्रवर्तन निदेशालय द्वारा जांच से बचने के लिए और तीसरा- अपने लिए अनुकूल नीति में बदलाव के विचार के रूप में दिए.

अधिवक्ता प्रशांत भूषण के जरिये दाखिल याचिका में याचिका में चुनावी बॉन्ड योजना को घोटाला बताते हुए अधिकारियों को उन ‘फर्जी कंपनियों और घाटे में चल रही कंपनियों’ के वित्त पोषण के स्रोत की जांच करने का भी आदेश देने की मांग की गई, जिन्होंने राजनीतिक दलों को मोटा चंदा दिया है. अधिवक्ता भूषण ने बॉन्ड के जरिये दिए गए चंदे को ‘क्विड प्रो क्वो व्यवस्था’ के हिस्से के रूप में वसूलने का भी आदेश देने की मांग की है, जहां यह अपराध की आय पाई जाती है.

याचिका में यह भी कहा गया है कि चुनावी बॉन्ड योजना घोटाले में 2जी स्पेक्ट्रम या कोयला खदान आवंटन घोटाले के विपरीत धन का लेन-देन है, जहां स्पेक्ट्रम और कोयला खनन पट्टों का आवंटन मनमाने ढंग से किया था, लेकिन धन के लेन-देन का साक्ष्य नहीं था. फिर भी जांच का आदेश दिया था.