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बच्चों के बीच सीएम भूपेश, मासूम सवालों के जवाब के साथ गेम भी खेले, सेल्फी भी ली

बस्‍तर संभाग के दौरे के दौरान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने नए अंदाज में नजर आए

जगदलपुर। बस्‍तर संभाग के दौरे के दौरान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने नए अंदाज में नजर आए। जगदलपुर में स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी स्कूल का निरीक्षण के दौरान मुख्यमंत्री ने मासूम सवालों के जवाब के साथ गेम भी खेले। इसके साथ ही बच्चों के साथ सेल्फी भी ली। दरअसल, क्लास की पिछली पंक्ति में बैठी नन्हीं रश्मि डहरिया ने एक बड़ा प्रश्न पूछ कर व्यस्त कार्यक्रम के बावजूद उन्हें जवाब देने विवश कर दिया।

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रश्मि ने मुख्यमंत्री से पूछा कि जिन स्वामी आत्मानन्द जी के नाम से हमारा स्कूल है, क्या आप हमें उनके बारे में बता सकते हैं ? ये सुनकर मुख्यमंत्री ने कहा- बेटी आपने बड़ा प्रश्न पूछ लिया, बैठो ! मुख्यमंत्री ब्लैक बोर्ड के सामने आ गए और उन्होंने विस्तार से बच्चों को स्वामी आत्मानंद के प्रेरक जीवन के विषय मे बताया। इस दौरान मुख्यमंत्री बघेल का महापुरुषों के प्रति अनुराग और आदर छलक पड़ा। बच्चों ने भी बड़ी तन्मयता से मुख्यमंत्री से उन स्वामीजी के बारे में जाना, जिनके नाम पर उनका स्कूल है।

मुख्यमंत्री ने बच्चों को बताया कि स्वामी आत्मानन्द का जन्म रायपुर में हुआ, उनके पिता का नाम श्री धनीराम वर्मा था। वे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और शिक्षक थे। महात्मा गांधी के आह्वान पर वे भारत छोड़ो आंदोलन में कूद पड़े। गिरफ्तारी हुई और नौकरी भी छूट गयी। वर्धा आश्रम में वे गांधीजी के साथ रहे।

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स्वामी आत्मानंद जब 4 साल के थे तो वे वर्धा आश्रम में महात्मा गांधी का प्रिय भजन रघुपति राघव राजा राम हारमोनियम पर गाकर सुनाते थे। वे बहुत कुशाग्र थे, एमएससी मैथ्स में नागपुर के गोल्ड मेडलिस्ट थे। तब छत्तीसगढ़ सीपी बरार प्रांत का हिस्सा था। नागपुर में ही विवेकानंद आश्रम से उन्हें स्वामी विवेकानंद के पथ पर चलने की प्रेरणा मिली। वे आईसीएस की परीक्षा में टॉप टेन में आये थे। वो कलेक्टर नहीं बने बल्कि स्वामी विवेकानंद आश्रम में शामिल हुए।

विवेकानंद जी भी रायपुर में अपने बचपन में रहे थे। कलकत्ता के बाद रायपुर में ही उन्होंने अपने जीवन का सबसे ज़्यादा समय गुज़ारा। स्वामी आत्मानंद जी ने रायपुर में आश्रम खोला, बड़ी मेहनत की। मगर उसी वक़्त अकाल पड़ा। स्वामीजी ने आश्रम के लिए जमा किये सारे पैसे अकाल पीड़ितों की सेवा में खर्च कर दिए। क्योंकि विवेकानंद जी कहते थे दरिद्रनारायण की सेवा ही परमात्मा की सेवा है। उन्होंने जगह जगह आश्रम खोले। इंदौर, भिलाई, अमरकंटक में आश्रम खोले।

 

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